मुहम्मद गौरी :-
पृथ्वीराज चौहान की उम्र अब सोलह वर्ष की हो चुकी थी इस समय वे नागौर के पास अट्टूपुर में शिकार खेल खेल रहे थे। इसीसमय मीर हुसैन नाम का एक गजनवी मुसलमान जो चंदरबरदाई के अनुसार मुहम्मद गौरी का चचेरा भाई था, चित्ररेखा नाम की एक वैश्या को साथ लेकर अपने साथ लेकर आ पहुंचा बात ये थी की चित्रलेखा वैश्या होने के साथ साथ बहुत ही गुणवती थी। वह सुन्दर होने के साथ साथ विणा बाजाने, गान विद्या आदि में भी बहुत निपुण थी। शहाबुद्दीन चित्रलेखा को बहुत चाहता था। शाहबुद्दीन उतना गुनी नहीं था पर मीर हुसैन गुनी होने के साथ साथ बहुत ही सुन्दर भी था, जब शाहबुद्दीन को उसके और चित्रलेखा के प्रेमप्रसंग के बारे में पता चला तो उसने उन्हें डरा-धमकाना चाहा। इसलिए मीर हुसैन, चित्रलेखा के साथ पृथ्वीराज चौहान की अजमेर नगरी आ पहुंचा। पृथ्वीराज चौहान ने जब विदेशी को अपने नगर में देखा तो उसने अपने सामंतों से विचार विमर्श करना उचित समझा, और अंत में पृथ्वीराज ने ये फैसला किया की क्षत्रिये धर्म के अनुसार शरणागत में आये हुए को ठुकराया नहीं जाता, और उन्होंने उसे आश्रय दे दिया, अतः पृथ्वीराज ने उसे अपने सभा के दाहिने ओर स्थान दिया और उसे बहुत ही सम्मान भी दिया। चन्द्रबरदाई के अनुसार पृथ्वीराज से गौरी के बैर का कारण यही था, लेकिन अन्य इतिहासकारों की माने तो गौरी भारत केवल लूट मार करने के लिए आया था उन्होंने किसी भी वैश्या के बारे में कोई जिक्र नहीं किया है। अगर चन्द्रबरदाई का कारण सही है तो ये बात माननी पड़ेगी की एक वैश्या के कारण घोर अनर्थ हो गया। शहाबुद्दीन ने अपने भाई के पीछे एक गुप्त भेदिया भी चोर रखा था ताकि वो ये जान सके की भारतवासी उसके साथ कैसा बर्ताव करते है, उसके गुप्तचर ने देखा की पृथ्वीराज चौहान उसे बहुत इज्जत के साथ रखा हुआ है, और ये सारा हाल मुहम्मद गौरी को जाकर सुना दिया, ये सुनते ही उसने अपने सरदारों के साथ विचार करने लगा, ये सुनकर उसने अपने एक सरदार ततार खां को अजमेर भेज दिया, और कहलवा दिया की अगर तुम चित्रलेखा को लौटा देते हो तो तुम देश में आकर रह सकते हो, ततार खां ने मीर हुसैन को बहुत समझाना चाहा पर वो एक नहीं माना, अंत में वो हार मानकर पृथ्वीराज को मुहम्मद गौरी का वो पत्र दे दिया जिसमे लिखा था की “ तुम मीर हुसैन को अपने राज्य से निकाल दो वरना मैं तुम पर आक्रमण कर दूंगा, इतना सुनते ही पृथ्वीराज चौहान के साथ साथ सारे सामंत क्रोधित हो उठे और एक स्वर में कह उठे “शरणागत को त्यागना क्षात्र धर्म के विपरीत है, मुहम्मद गौरी जो चाहे कर ले हम मीर हुसैन को नहीं निकल सकते है “। आखिर का उस ततार खां को लचर होकर वहां से जाना पड़ा। वह गजनी पहुँच कर सारा हाल गौरी को सुनाया, इतना सुनते ही गौरी ने अपने सभी सरदारों को बुला भेजा और पृथ्वीराज से अपने अपमान का बदला कैसे लिया जाए इस पर विचार विमर्श होने लगा। ततार खां ने भारत पर आक्रमण करने की राय दी पर इस पर खुरासान ने ये राय दी की हम भारत को जानते नहीं है इसलिए इस समय अकर्मण करना उचित नहीं होगा क्योंकि शत्रु को जाने बगैर युद्ध करने में कोई बुद्धिमानी नहीं है, इतना सुनते ही उसके दूत भी बोल उठे की हाँ ये बात सत्य है क्योंकि पृथ्वीराज, उसके सामंत और उसके सैनिक कोई साधारण पुरुष नहीं है, गौरी कुछ देर तक शांत बैठा रहा फिर अपने दूत से बोला तुम तो भारत गए हो न तुम मुझे भारत के बारे में बताओ, दूत ने उसे भारत के बारे में बटन शुरू किया की संसार में भारत जैसा कोई दूसरा देश नहीं है, यहाँ सुन्दरता का भंडार है,यहाँ की भूमि उर्वरता से भरी पड़ी है, यहाँ में कई महल है जिसकी सुन्दरता का वर्णन मैं बोल के नहीं कर सकता है, यह देश जन, संपत्ति और वैभव से भरी पड़ी है, इसपर गौरी ने कहा की तब तो ये देश धर्म प्रचार के लिए बहुत ही सही है,इतना कह कर वो चुप हो गया, इसके बाद उस दूत ने कहा कि मैं लगभग आधा भारत घूम चूका हूँ मैंने कोई भी तीर्थ स्थल नहीं छोड़ा है, पर वहां एक बात मुझे देखने को मिली है की वहां पर हिन्दू समाज कई भागों में बंटा हुआ है ब्राह्मण, क्षत्रिय, शुद्र आदि मैं सबसे मिला पर वो सब अपने काम में अद्भुत है,अगर मैं दूसरी शब्द में कहूं तो भारत एक जन्नत है, इसपर गौरी ने कहा की तो फिर उस जन्नत से लौट क्यों आये? इसपर उस दूत ने कहा की मैं तो बस यहाँ पर आपको रास्ता दिखाने के लिए आया हूँ बिना मुश्लिम धर्म के प्रचार किये उस देश की उन्नति नहीं हो सकती है। पर ये बात है की हिन्दुओं की सकती असीमित है उन्हें पराजय नहीं किया जा सकता, वहां की प्रजा तो अपने राजा के प्रति इतनी भक्त है की उसके एक आदेश से वो जहर तक पी लेते है अतः आप हिंदू को कमजोर न समझे इतना कहकर वो दूत शांत हो गया। गौरी ने कहा की मानता हूँ की ये सब ठीक है पर हिन्दुओं में जितनी वीरता है उतनी ही उनमे फूट भी भरी पड़ी है, इसलिए मैं इन बैटन पर विचार नहीं कर सकता, विचार करने की बात तो ये है की कासिम ने केवल बीस वर्ष की उम्र में ही हिन्दुओं पर विजय प्राप्त की थी। महमूद ने भारत पर अठारह बार आक्रमण किया तब हिन्दुवों की ताकत कहाँ चली गयी थी,उनके पास ताकत अवश्य थी पर कुसंगत और कुविचार उनमे उस समय भी भरी पड़ी थी, कासिम में जब देवलपूरी पर आक्रमण किया था तब हिन्दुओं ने कहा था की जब तक उनके मंदिर पर ध्वजा लहराती होगी तबतक उन्हें कोई नहीं हरा पायेगा,कासिम ने सबसे पहले उस ध्वजा को ही काट दिया और तब हिन्दुओं ने ये सोच लिया की अब उनकी हर निश्चित है और बिना परिश्रम के ही कासिम ने उनपर विजय प्राप्त कर ली थी, इतिहास से ये साबित होता है की हिन्दोवों को हराया जा सकता है और और भारत में मुसलमान धरम प्रचार संभव है। इसके बाद गौरी ने अपने सभी सरदारों की सहमती ली और इस्लाम धर्म के प्रचार हेतु भारत पर आक्रमण करने का फैसला लिया गया।
मुहम्मद गौरी के अन्य आक्रमण:-
परन्तु शाहबुद्दीन ने इसे अपना अपमान समझा और पृथ्वीराज चौहान से अपना बदला लेने का ठान लिया। एक बार पृथ्वीराज चौहान लट्टूवन में शिकार खेलने गए थे, जब गौरी को इसबात का पता चला तो उसने उसी समय उनपर आक्रमण कर दिया, पर उसे उस बार भी हार का सामना करना पड़ा, उस समय गौरी किसी तरह भागने में सफल हो गया था।
कुछ समय के बाद अब पृथ्वीराज नागौर मैं थे, उन्हें ये ससमाचार मिला की मुहम्मद गौरी फिर से आक्रमण करने की फिराक में है, इतना सुनते ही पृथ्वीराजने अपनी सेना एकत्र करना शुरू कर दिया, इस वक़्त पृथ्वीराज के पास केवल 8000 सैनिक थी इसलिए उन्होंने दिल्ली अपने नाना अनंगपाल जी से कहलवा कर 4000 सैनिकों को और मंगवा लिया अपनी साडी सेना को तैयार करने के बाद पृथ्वीराज सारुंड की ओर चल दिए और दुश्मन के आने का इंतज़ार करने लगे, इस समय भारत के इतिहास का काफी भीषण समय था क्योंकि विदेशी भारत पर बार बार आक्रमण कर रहे थे और केवल पृथ्वीराज ही उनका अकेला ही मुकाबला कर रहे थे, इतिहासकार के अनुसार कश्मीर के मुसलमान और पंजाब के कुछ भागो के हिन्दू भी पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध मुहम्मद गौरी का साथ दे रहे थे, एक बात तो बिलकुल ही निश्चित है की एक मात्र पृथ्वीराज चौहान के कारण ही कई वर्षों तक विदेशी भारत की ओर आंख उठा कर भी नहीं देख पाए। मुहम्मद गौरी की सेना पृथ्वीराज चौहान की ओर आगे बढती चली आ रही थी, जिसकी खबर पृथ्वीराज को पहले से थी, पृथ्वीराज ने अपना भेदिया भेज कर जानकारी मंगवानी चाही, भेदिया ने उन्हें जानकारी दी की मुहम्मद गौरी तीन लाख सेना के साथ आक्रमण करने के लिए आ रहा है, उनके सेना में गखर, काबुली,कश्मीरी,हक्शी, आदि तरह के सेना है। यद्यपि पृथ्वीराज पर गौरी ने एक बड़ी सेना के साथ हमला किया था और पृथ्वीराज के पास केवल पंद्रह हज़ार ही सेना थी, इसलिए इस बार पृथ्वीराज को गौरी के बहुत बड़ी सेना का सामना करना पड़ा था, इस बार का युद्ध बहुत ही भयानक था , यह युद्ध भी सारुंड के समीप ही हुआ था। जब मुहम्मद गौरी को ये पता चला की पृथ्वीराज के पास थोड़ी सी ही सेना है तो वह बहुत खुश हुआ, और सबसे पहले खुरासानी सेना को आक्रमण करने की आज्ञा दे दी, इस आक्रमण को बचने के लिए लोहाना अजानुबाहू अग्रसर हुई, लोहाना की वीरता से मुसलमान सेना की छक्के छुट गयी।पृथ्वीराज की मदद करने हेतु कान्हा भी नागौर से आ पहुंचा, पृथ्वीराज चौहान की वीरता और युद्ध कुशलता को देखकर दुश्मन अपने होश खोने लगे, कान्हा ने भी बड़ी वीरता दिखाई, मुसलमान सेना पृथ्वीराज,कान्हा,चन्द्र,पुय्न्दीर, की वीरता देखकर सहम गयी और कराह उठी,जो हो इस थोड़ी सी सेना ने ऐसा विचित्र काम कर दिखाया जो की असंभव सा लगता है। छोटे से हिन्दू सेना से मुसलमान सेना हताशत हो रहे थे, हिन्दू सेना यवनी सेना को छिन्न-भिन्न करते हुए मुहम्मद गौरी की ओर अग्रसर हुई, ये देखकर गौरी घोडा छोड़ हठी पर सवार हो गया और यावनी सेना चारो ओर से उशे घेर कर उशकी रक्षा करने लगे। सभी राजपूत वीर अपनी प्राणों के ममता को छोड़ कर युद्ध कर रहे थे उन्हें केवल यवनी सेना के खून की प्यास थी। मुहम्मद गौरी को हाथी में सवार देख कर जैतसी की सेना गौरी की तरफ अग्रसर हुई, वह युद्ध करते करते एक ऐसे जगह में जा पहुंचा जहाँ से निकल पाना असंभव था, वो चारो ओर से घिर चूका था, इस समय पृथ्वीराज की दृष्टी जैतसी पर पड़ गयी और उन्होंने अपना घोडा जैतसी की तरफ भगाया, उन्होंने चारों ओर से घेरे हुए यवनी सेना को अकेले ही परलोक भेज दिया, जैतसी ने भी बड़ी बहादुरी दिखायी। यवनी सेना पीछे भागने को मजबूर हो गयी,गौरी फिर से हाथी छोड़ घोडा में बैठ युद्ध करने लगा पर कोई काम न आया। छोटे से हिन्दू सेना के सामने उतनी बड़ी मुसलमान सेना पीठ दिखाने को मजबूर हुई, गौरी भी उनके साथ भागा, परन्तु पृथ्वीराज के मना करने पर भी जैतसी ने गौरी का पीछा कर उसे पकड़ लिया और पृथ्वीराज के चरणों में लाकर पटक दिया। गौरी को फिर से बंदी बना लिया गया। पृथ्वीराज ने इन सभी झमेलों से निश्चिंत होकर इच्छन कुमारी से विवाह किया और इस आनंद के मौके पर गौरी को धन देकर छोड़ दिया। परन्तु स्त्रियौ के सम्बन्ध में पृथ्वीराज की अभिलासा जैसे जैसे पोरी होती जाती वैसे वैसे और बढ़ती जा रही थी। एक वर्ष के बाद ही पृथ्वीराज इच्छन कुमारी से ट्रिप हो गए और दूसरी की आवश्यकता आ पड़ी। इसी बीच उनकी नज़र कैमाश की बहन पर जा पड़ी, और शादी करने की इच्छा जताई, कैमाश के पिता ने उनकी बातें मान ली और अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह करवा दिया साथ ही कई आदमियों की जान की रक्षा की।
मुहम्मद गौरी के आक्रमण:-
दुसरे ही दिन गजनी में युद्ध की तयारियां शुरू होने लगी और मुहम्मद गौरी अपनी सेना को सुस्सज्जित कर के पृथ्वीराज चौहान की ओर युद्ध करने चल दिया। भारत में समय समय पर कई मुसलमान ने आक्रमण कर इसे लूटा है, उन्होंने भारत के कई भू-भाग में कब्ज़ा कर लिया पर वो उनकी रक्षा नहीं कर पाए, और हिन्दुओं ने उनपर फिर से अपना अधिकार कर लिया। मुहम्मद गौरी ने भी भारत के कई उत्तर के भू-भाग में अपना अधिकार जमाया और प्रभुत्व स्थापित किया। उसने 1174 में मुल्तनानगर,1178 में अनाह्वाडा, और 1182 तक सारे सिन्धु देश (वर्त्तमान में पाकिस्तान) अपना अधिकार जमा लिया था।इसके बाद उसने 1184 में लाहौर और सियाकोट, पर भी अपना अधिकार जमाया था। इसके बाद उसका सामना पृथ्वीराज से हुआ था।
दुसरे ही दिन गजनी में युद्ध की तयारियां शुरू होने लगी और मुहम्मद गौरी अपनी सेना को सुस्सज्जित कर के पृथ्वीराज चौहान की ओर युद्ध करने चल दिया। भारत में समय समय पर कई मुसलमान ने आक्रमण कर इसे लूटा है, उन्होंने भारत के कई भू-भाग में कब्ज़ा कर लिया पर वो उनकी रक्षा नहीं कर पाए, और हिन्दुओं ने उनपर फिर से अपना अधिकार कर लिया। मुहम्मद गौरी ने भी भारत के कई उत्तर के भू-भाग में अपना अधिकार जमाया और प्रभुत्व स्थापित किया। उसने 1174 में मुल्तनानगर,1178 में अनाह्वाडा, और 1182 तक सारे सिन्धु देश (वर्त्तमान में पाकिस्तान) अपना अधिकार जमा लिया था।इसके बाद उसने 1184 में लाहौर और सियाकोट, पर भी अपना अधिकार जमाया था। इसके बाद उसका सामना पृथ्वीराज से हुआ था। जब पृथ्वीराज को ये मालूम हुआ की मुहम्मद गौरी उनपर आक्रमण करने के लिए प्रस्तुत हो गृहे है तो उन्होंने अपने सभी सामंतों, कैमाश,चन्द्र, पुएंदिर, संजम राय, कान्हा को इकठा किया और अपनी सेना के साथ मुहम्मद गौरी को जवाब देने के लिए सारुंड की ओर अग्रसर हुए। मीर हुसैन को जब ये बात मालूम हुई तो उसने भी एक हज़ार सैनिक बल को जमा किया और पृथ्वीराज के सामने प्रस्तुत होकर कहा की महाराज मेरे कारण से ही आपके इस राज्य में ये विपदा आई है मैं कैसे पीछे रह सकता है, आपने मेरी असमय में मदद की थी अब मुझे अपना कर्तव्य पूरा करने दीजिये, पृथ्वीराज उनके बातों को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए, और दोनों की सम्मिलित सेना आगे बढ़ने लगी। उन्होंने सारुंड नामक एक जगह में अपना पड़ाव डाल दिया। गौरी के दूतों ने भी ये समाचार उसे सुनाया और तेज़ी से सारुंड की ओर अग्रसर हुई और वहां पहुँच गयी। पृथ्वीराज चौहान को जैसे ही ये खबर मिली उनकी सेना तैयार हो गयी और “हर हर महादेव” शब्द करती हुई आगे बढ़ी, फौज के आगे बढ़ने का समाचार सुनकर मुहम्मद गौरी ने अपनी सेना को पांच भागो में विभक्त कर पृथ्वीराज की सेना पर आक्रमण कर दिया, पृथ्वीराज चौहान ने यादवराय,महंसी,बड़ाराम गुजर, आदि को मीर हुसैन की मदद करने का आदेश दिया, और सबसे पहले मीर हुसैन का सामना गौरी के सेनापति ततार खां से हो गया, मीर हुसैन के 1500 सैनिक और ततार खां के 7000 सैनिकों ने युद्ध में हिस्सा लिया, बहुत ही घोर युद्ध हुआ, इस युद्ध में ततार खां अपने 5000 सैनिकों के साथ मारा गया और मीर हुसैन भी 300 मुसलमान और 200 हिन्दुओं के साथ मारा गया, ततार खां के मरते ही उसकी सेना भागने लगी। ततार खां को पराजित होते देख खुरासान खां की सेना आगे बढ़ी और उसका सामना पृथ्वीराज के सामंत चामुंडराय से हो गयी, चामुंड राय ने भी खुरासन खां को मार गिराया और उसके मरते ही उसकी सेना बादशाह गौरी की सेना से जा मिली, अब पृथ्वीराज की सेना ने बड़े ही वेग से आगे बढ़ी, पृथ्वीराज चौहान ने वीरता पुर्वक लड़ाई करते हुए उन मुसलमानों की तरफ बढ़ते चले गए, और अपनी तलवार से मुसलमानों को गाजर मुली की तरह काटते गए, हिन्दू सेना की वीरता देखकर उनकी दांत खट्टे होने लगे और वो भागने लगे, पृथ्वीराज चौहान की सेना उनका पीछा करने लगे, जब मुहम्मद गौरी ने अपनी सेना को पीछे भागते देखा तो वो एक जगह खड़ा होकर फिर से लड़ने की इच्छा से सैनिक एकत्र करने लगा, पर पृथ्वीराज के सेना को रोक पाना उसके बस में न थी, जल्द ही पृथ्वीराज की सेना ने उसे चारो तरफ से घेर लिया, मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज के सामने अपना सर झुकाना ही उचित समझा, और पृथ्वीराज ने “एक झुकी गर्दन पर तलवार चलाने को क्षत्रिये धर्म के विपरीत समझ कर उसे बंदी बना लिया गया। इस युद्ध में मुहम्मद गौरी के बीस हज़ार सैनिक और कितने ही सरदार मारे गए और पृथ्वीराज की तरफ से 1300 सैनिक और 5 सरदार मारे गए। पृथ्वीराज चौहान ने गौरी को पांच दिनों तक दरबार में रखा और मीर हुसैन के पुत्र को उसे सौंप दिया, उन्होंने गौरी को बहुत सा धन, और फिर कभी न आक्रमण करने की प्रतिज्ञा करा कर उसे जाने दिया। चित्ररेखा मीर हुसैन की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके शव के साथ जीवित ही कब्र में गड गयी। और इस तरह से सरुन्द का युद्ध समाप्त हुआ।
परन्तु शाहबुद्दीन ने इसे अपना अपमान समझा और पृथ्वीराज चौहान से अपना बदला लेने का ठान लिया। एक बार पृथ्वीराज चौहान लट्टूवन में शिकार खेलने गए थे, जब गौरी को इसबात का पता चला तो उसने उसी समय उनपर आक्रमण कर दिया, पर उसे उस बार भी हार का सामना करना पड़ा, उस समय गौरी किसी तरह भागने में सफल हो गया था।
कुछ समय के बाद अब पृथ्वीराज नागौर मैं थे, उन्हें ये ससमाचार मिला की मुहम्मद गौरी फिर से आक्रमण करने की फिराक में है, इतना सुनते ही पृथ्वीराजने अपनी सेना एकत्र करना शुरू कर दिया, इस वक़्त पृथ्वीराज के पास केवल 8000 सैनिक थी इसलिए उन्होंने दिल्ली अपने नाना अनंगपाल जी से कहलवा कर 4000 सैनिकों को और मंगवा लिया अपनी साडी सेना को तैयार करने के बाद पृथ्वीराज सारुंड की ओर चल दिए और दुश्मन के आने का इंतज़ार करने लगे, इस समय भारत के इतिहास का काफी भीषण समय था क्योंकि विदेशी भारत पर बार बार आक्रमण कर रहे थे और केवल पृथ्वीराज ही उनका अकेला ही मुकाबला कर रहे थे, इतिहासकार के अनुसार कश्मीर के मुसलमान और पंजाब के कुछ भागो के हिन्दू भी पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध मुहम्मद गौरी का साथ दे रहे थे, एक बात तो बिलकुल ही निश्चित है की एक मात्र पृथ्वीराज चौहान के कारण ही कई वर्षों तक विदेशी भारत की ओर आंख उठा कर भी नहीं देख पाए। मुहम्मद गौरी की सेना पृथ्वीराज चौहान की ओर आगे बढती चली आ रही थी, जिसकी खबर पृथ्वीराज को पहले से थी, पृथ्वीराज ने अपना भेदिया भेज कर जानकारी मंगवानी चाही, भेदिया ने उन्हें जानकारी दी की मुहम्मद गौरी तीन लाख सेना के साथ आक्रमण करने के लिए आ रहा है, उनके सेना में गखर, काबुली,कश्मीरी,हक्शी, आदि तरह के सेना है। यद्यपि पृथ्वीराज पर गौरी ने एक बड़ी सेना के साथ हमला किया था और पृथ्वीराज के पास केवल पंद्रह हज़ार ही सेना थी, इसलिए इस बार पृथ्वीराज को गौरी के बहुत बड़ी सेना का सामना करना पड़ा था, इस बार का युद्ध बहुत ही भयानक था , यह युद्ध भी सारुंड के समीप ही हुआ था। जब मुहम्मद गौरी को ये पता चला की पृथ्वीराज के पास थोड़ी सी ही सेना है तो वह बहुत खुश हुआ, और सबसे पहले खुरासानी सेना को आक्रमण करने की आज्ञा दे दी, इस आक्रमण को बचने के लिए लोहाना अजानुबाहू अग्रसर हुई, लोहाना की वीरता से मुसलमान सेना की छक्के छुट गयी।पृथ्वीराज की मदद करने हेतु कान्हा भी नागौर से आ पहुंचा, पृथ्वीराज चौहान की वीरता और युद्ध कुशलता को देखकर दुश्मन अपने होश खोने लगे, कान्हा ने भी बड़ी वीरता दिखाई, मुसलमान सेना पृथ्वीराज,कान्हा,चन्द्र,पुय्न्दीर, की वीरता देखकर सहम गयी और कराह उठी,जो हो इस थोड़ी सी सेना ने ऐसा विचित्र काम कर दिखाया जो की असंभव सा लगता है। छोटे से हिन्दू सेना से मुसलमान सेना हताशत हो रहे थे, हिन्दू सेना यवनी सेना को छिन्न-भिन्न करते हुए मुहम्मद गौरी की ओर अग्रसर हुई, ये देखकर गौरी घोडा छोड़ हठी पर सवार हो गया और यावनी सेना चारो ओर से उशे घेर कर उशकी रक्षा करने लगे। सभी राजपूत वीर अपनी प्राणों के ममता को छोड़ कर युद्ध कर रहे थे उन्हें केवल यवनी सेना के खून की प्यास थी। मुहम्मद गौरी को हाथी में सवार देख कर जैतसी की सेना गौरी की तरफ अग्रसर हुई, वह युद्ध करते करते एक ऐसे जगह में जा पहुंचा जहाँ से निकल पाना असंभव था, वो चारो ओर से घिर चूका था, इस समय पृथ्वीराज की दृष्टी जैतसी पर पड़ गयी और उन्होंने अपना घोडा जैतसी की तरफ भगाया, उन्होंने चारों ओर से घेरे हुए यवनी सेना को अकेले ही परलोक भेज दिया, जैतसी ने भी बड़ी बहादुरी दिखायी। यवनी सेना पीछे भागने को मजबूर हो गयी,गौरी फिर से हाथी छोड़ घोडा में बैठ युद्ध करने लगा पर कोई काम न आया। छोटे से हिन्दू सेना के सामने उतनी बड़ी मुसलमान सेना पीठ दिखाने को मजबूर हुई, गौरी भी उनके साथ भागा, परन्तु पृथ्वीराज के मना करने पर भी जैतसी ने गौरी का पीछा कर उसे पकड़ लिया और पृथ्वीराज के चरणों में लाकर पटक दिया। गौरी को फिर से बंदी बना लिया गया। पृथ्वीराज ने इन सभी झमेलों से निश्चिंत होकर इच्छन कुमारी से विवाह किया और इस आनंद के मौके पर गौरी को धन देकर छोड़ दिया। परन्तु स्त्रियौ के सम्बन्ध में पृथ्वीराज की अभिलासा जैसे जैसे पोरी होती जाती वैसे वैसे और बढ़ती जा रही थी। एक वर्ष के बाद ही पृथ्वीराज इच्छन कुमारी से ट्रिप हो गए और दूसरी की आवश्यकता आ पड़ी। इसी बीच उनकी नज़र कैमाश की बहन पर जा पड़ी, और शादी करने की इच्छा जताई, कैमाश के पिता ने उनकी बातें मान ली और अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह करवा दिया साथ ही कई आदमियों की जान की रक्षा की।