Friday, 4 March 2016

परिचय

                                                       पृथ्वीराज चौहान  परिचय:-

हमारे हिंदुस्तान में हमारी शिक्षा प्रणाली ने हमें कभी भी सही तरीके से हमारा गौरव पूर्ण इतिहास हमें कभी नहीं बताया क्योंकि ये हमारे देश और हम सब का दुर्भाग्य है, हमें कभी भी ये नहीं पता चल सका की हमारे अपने देश में लोग कैसे थे या फिर कितनो ने राज किया, ये सारी बातें कुछ ही लोगो को पता होगी। मुझे याद है की मैं जब पांचवी कक्षा में पहुंचा था तब से लेकर दसवी तक मैं अगर अपने स्वतंत्रता सेनानियों को छोड़ दूं तो और किसी भी शाषक के बारे में कहीं नहीं पढ़ा था, बल्कि मैं अमेरिका। पेरिस और पता नहीं किन किन देशों के बारे में पढ़ा था, जिनमे लिखा था की वो क्या पहनते थे, क्या खाते थे, मैंने उस समय भी अपने शिक्षकों से कहा था की हमें अपने देश के बारे तो कुछ पता नहीं और पेरिस के बारे में पढ़ रहे है, पर मेरे अध्यापक ने इसे हमारा दुर्भाग्य बताया और भारत की शिक्षा निति यही है ये बता कर मुझे समझाया था, खैर उसके बारे में तो मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ।शुरुवात से ही हमें एक गलत इतिहास बताया गया है।एक लेखक ने तो महाराज पृथ्वीराज चौहान को गद्दार तक लिख दिया जिसकी गूँज संसद तक उठी और ये बात उस लेखक ने अपने निजी उपन्यास या किताब में नहीं लिखी बल्कि 11वी कक्षा के इतिहास के किताब में लिख दी थी, जिसे बाद में बदला गया। खैर सच्चाई कभी किसी से छुपती नहीं है। पृथ्वीराज चौहान के चरित्र के बारे में ऊँगली उठाने वाले निश्चित ही उनके बैरी ही है।
हमारे हिन्दुस्तान में पृथ्वीराज चौहान कोई परिचय या तारीफ का मोहताज़ नहीं है पर क्या आप उनकी इस वीरता की कहानी को अच्छी तरह से जानते है।।।।।मुझे लगता है की आप में से बहुत कोई को उनके जीवन के कुछ पहलू या बेहतरीन लम्हों को छोड़ कर बहुत ज्यादा कुछ नहीं पता होगा ।आप यहाँ पर उनके हर पहलू को अलग अलग पेज में जाकर पढ़ सकते है जो की लिंक से जोड़ दिए गए है। पृथ्वीराज चौहान के समय की कुछ खास जानकारी नहीं मिलती है चंदरबरदाई को छोड़ दे तो बहुत इतिहासकार का अपना अपना अलग अलग मत है। कुछ टीवी सीरियल में भी उनके चरित्रों को दर्शाया गया है पर उनके निर्देशकों ने कुछ ज्यादा ही छूट लेकर उन्हें आप सभों के सामने प्रस्तुत किया। खैर अब आप उनके जीवन का सारांश हमारे इस वेबसाइट में पढ़ सकते है। कृपया हमारा साथ दे और छोटी गलतियों को नज़र अंदाज़ करें।
मुसलमानों ने मुहम्मद गौरी से युद्ध के अतिरिक्त और कोई भी बात नहीं लिखी है। रासो में उनकी मौत के बारे में लिखी है की तेरायन की दूसरी युद्ध में उन्हें बंदी बना लिया गया और उन्हें गजनी ले जाया गया जिसे आप आगे विस्तार से पढेंगे वहां पर उनके साथ बहुत बुरी तरह से जुल्म किये गए, मुह्हमद गौरी के आंख नीचे करने के आदेश को जब पृथ्वी ने नहीं माना तब उनकी आंखे फोड़ दी गयी, तब चन्द्रबरदाई के कहने पर उसी हालत में शब्द भेदी बाण विद्या का इस्तेमाल करके उन्होंने मुहम्मद गौरी को मारा।और वे एक दुसरे को भी मार दिए। हमें दुःख तो इस बात का है की पृथ्वीराज चौहान को 900 सालो तक अपने देश की मिटटी नहीं नसीब हुई, कई बार भारत सरकार को उनके कब्र को भारत लाने की मांग की गयी पर यहाँ के नेताओं को अपनी जेब भरने से फुर्सत मिले तब तो, फिर जो काम भारत सरकार नहीं कर पायी वो एक राजपूत वीर ने सन 2001 में शेर सिंह राणा ने कर दिखाया, वो अफगानिस्तान जा कर उनकी अश्थियाँ को भारत वापस लाये और उन्हें गंगा में विसर्जित कर उनके आत्मा को शांति दी, इतना ही नहीं उन्होंने पृथ्वीराज की समाधी भी कानपूर के बेवर में बनवाया। वो अवश्य ही पृथ्वीराज के कोई पुत्र होंगे जिसने अगले जनम में अपने पुत्र होने का फर्ज निभाया। इस वेबसाइट में हम आपके सामने पृथ्वीराज रासो पर लिखी हुई बातों के अनुसार ही जानकारियां दे रहे है पृथ्वीराज के पतन के साथ ही भारत के स्वतंत्रता का सुरज हमेशा के लिए अस्त जो गया। उसी समय से लोगो के मन में ये विश्वास है की मुसलमानों के आगमन से ही हमारे देश का ये हाल हुआ है पर गौर करने वाली बात ये है की अगर हम में उसी समय आपस में फूट न पड़ी होती तो क्या हमारे पास ये दिन देखने को आता। हमारी ही कमजोरी ने ही उन्हें यहाँ आने का आमंत्रण दिया। जो हो पर ये बात तो पक्की थी की जब तक हमारे देश में पृथ्वीराज चौहान और उनके दोस्तों के जैसे वीर हिन्दुस्तान के धरती पर थे मुसलमान इधर आँख उठा कर भी देख नहीं पाए पर उनके कुछ गलतियों के कारण ही हमारा हिन्दुस्तान परतंत्रता की जंजीर में लगभग 800 सालों तक बंध गया



                                                  बाल्य जीवन :-


आज हम जिस वीर अग्निपुरुष के जीवन के बारे मे जानने जा रहे है, उसका का जन्म प्रसिद्ध चौहान वंश में, विक्रमिये सम्बत्त 1148 वैशाख दिन गुरूवार 24 अक्टूबर को दिल्ली अनागपल तोमर की कनिष्ठ कन्या कमलावती के गर्भ से हुआ था। पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर जी चौहान की राजधानी अजमेर नगरी थी जो की उस समय अपने वैभव और कृति से सोमेश्वर राज चौहान की छत्रछाया में सुसज्जित थी। उस समय सोमेश्वर चौहान की वीरता की कहानी दूर दूर तक फैली हुई थी, उनकी वीरता की गाथा को सुनकर दिल्ली के महाराज अनंगपाल ने उनके और कम्ध्यज्ज्य के बीच हो रहे युद्ध में उन्हें युद्ध में आने का आमंत्रण दिया, कन्नोज के राजा विजयपाल ने भी इस युद्ध में अनंगपाल का साथ दिया, तीनो ने एक साथ युद्ध लडकर विजय हासिल की। इससे दिल्ली के महाराज अन्नाग्पाल इतने खुश हुए की अपनी छोटी बेटी कमलावती का विवाह अजमेर के महाराजा सोमेस्वर से तय कर दिए। विजयपाल उनके बड़ी बेटी के पति थे। ये तीनो राज्य अब अपने वैभव के साथ अब फलने फूलने लगी थी। अब जब कभी अजमेर पर विपदा आती तो कन्नोज के राजा विजयपाल महाराज सोमेश्वर का साथ देते। एक बार यवन के सेना ने अजमेर पर हमला कर दिया और विजयपाल ने इस संकट के घडी में उनका साथ दिया और दुर्भाग्य वश महाराज विजयपाल की मौत हो गयी। इसके फलस्वरूप उनके बेटे जयचंद्र को कन्नोज का राजा बना दिया गया। चौहान वंश कब से स्थापित हुआ इसका कोई ठीक ठीक प्रमाण तो नहीं मिलता है पर रासो के अनुसार चौहान वंस की उत्पत्ति एक यज्ञ कुंड से हुई जो की दानवों के विनाश के लिए हुई थी। चौहान वंश के 173 वे वंश में बीसलदेव हुए थे उनके राज में ज्यादा कुछ नहीं हुई थी उनके बाद सारंगदेव आये जिन्होंने अजमेर का प्रसिद्ध आना सागर बनवाए,जय सिंह इन्हें के पुत्र थे जो की पृथ्वीराज के दादा जी थे। उस समय केवल चन्द्रबरदाई के जैसे महान कवी ही राज दरबार की शोभा बढ़ाते थे और युद्ध के मैदान में अपना कौशल दिखाते थे। वे अपनी कविताओं के माध्यम से वहां के राजा और प्रजा दोनों का मन जिधर चाहते थे उधर ही फेर देते थे। पृथ्वीराज चौहान बच्चपन से ही न केवल तीर कमान बल्कि भाला , तलवार और शब्द भेदी बाण विद्या में निपुण हो गए थे। श्री राम गुरु जी ने बचपन से ही युद्ध कौशल और रणनीति देखकर ये भविष्यवाणी भी कर दी थी की पृथ्वीराज चौहान का नाम भविष्य में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जायेगा। पृथ्वीराज के बाल्य जीवन के बारे में रासो में ज्यादा कुछ नहीं मिलता है।। उस समय राजकुमारों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल भेजा जाता था और वहीँ पर उन्हें युद्ध निति और राज पाठ के बारे में शिखाया जाता था। पृथ्वी के गुरु का नाम श्रीराम था। आरंम्भ से ही पृथ्वीराज चौहान ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया था इन्होने अपने गुरु श्रीराम से बहुत सारी शिक्षा प्राप्त की थी। पृथ्वीराज चौहान जब गुरुकुल में थे तब भीमदेव ने अजमेर पर हमला कर दिया लेकिन उसे सोमेश्वर जी के हाथों मुंह की खानी पड़ी महाराज सोमेश्वर इस बार भी विजयी रहे।
इनके बचपन के दोस्त थे निठुर्रय,जैतसिंह, कविचंद्र, दहिराम्भराय, हरसिंह पंज्जुराय,सरंगराय, कन्ह्राराय, सखुली, संजम राय इत्याद्दी के साथ पृथ्वी हमेशा शूरता के ही खेल खेला करते थे। उनमे से कुछ आमुक टिलहे को अमुक गढ़ मानकर वे उनकी रक्षा करते थे और उनमे से कुछ उनको लूटते थे, अक्सर वे ऐसा ही खेला करते थे। इसके बाद वे शिकार खेलने जाते थे। इसी प्रकार से पृथ्वीराज की शिक्षा हुई थी। पृथ्वी के पिता सोमेश्वर राज चौहान जैसे वीर थे वैसे ही वे राजनीती वीसारत भी थे हालाँकि उनकी राज्य केवल अजमेर तक थी पर उन्होंने अपनी राज्य सीमा इतनी तक बढ़ा ली थी ककी उनकी सीमा गुजरात सी जा मिली थी। गुजरात के राजा भीमदेव सोलंकी को उनका राज्य विस्तार अच्छा न लगता था इसलिए वो उनसे अन्दर ही अन्दर इर्ष्या करता था जिसमे पृथ्वी की वीरता की कहानी ने इसमें घी का काम किया। पृथ्वीराज चौहान कभी कभी शिकार खेलते खेलते गुजरात की सीमा तक जा पहुँचते थे, भीमदेव ने तो अपने जासूसों को उन्हें पकड़ कर मार डालने की आज्ञा भी दे रखी थी पर वे सदा ही उनसे बचते चले आये। जब पृथ्वीराज की आयु 13 साल की हुई तो उन्हें राजनीती की शिक्षा देने के लिए उन्हें युवराज का पद दे दिया गया। अपने युवराज काल में ही पृथ्वीराज चौहान ने अपने अद्भभुत प्रतिभा का परिचय दे दिया था। कहा जाता है की पृथ्वीराज चौहान ने केवल 13 की उम्र में जंगल के एक शेर को बिना किसी हथियार के ही मार डाला था। अब पृथ्वी अपने राज महल में ही राजनीती के शिक्षा लेने लगे थे, भीमदेव हार जाने के बावजूद सोमेश्वर और अजमेर नगरी पर अपना राज चाहता था, इसके लिए उसने कई चले भी चली। उसने अजमेर के तरफ दोस्ती का हाथ बढाया, पृथ्वी के मना करने पर भी सोमेश्वर जी ने उन्हें बताया की ये राजनीती है आप अपने महाराज पर भरोसा रखें, अब भीमदेव राजमहल तक आ गया और पीछे से एक गुप्त भेदिया भी ले आया था, उसके जाने के बाद वो भेदिया अजमेर का राजश्री मुहर चुरा कर ले गया, भीमदेव उस राजश्री मुहर का इस्तेमाल वहां का कर बढ़ा कर वहां के प्रजा को अपने राजा के विरुद्ध करना चाहता था।पर जैसे ही पृथ्वी को ये बात पता चली उसने अपने वीर राजपूत दोस्तों पुंडीर,संजम राय, चंदरबरदाई, अर्जुन आदि के साथ गुजरात की ओर चल दिए वहां पर उन्होंने अपना वीरता और बुद्धिमानी का बखूबी प्रदर्शन कर वो राजश्री मुहर अजमेर वापस लाये। उस समय भारत अपने सुख समृद्धि के शीर्ष पर था विदेशियों की नज़र शुरुवात से ही इस देश में थी, वे व्यापारी, साधू, फकीर आदि के रूप में वहां जाकर लोगो को धोखा और राज्य के गुप्त भेद को जानने का प्रयत्न करते रहते थे, एक बार आजमेर में रोशन अली नाम का फकीर प्रजा को धोखा दे रहा था जब पृथ्वी को इस बात का पता चला तब उन्होंने अपने सामंत चामुडराय को उसके पास भेज कर समझाना चाहा पर जब वो नहीं माना तब पृथ्वीराज ने उसकी उँगलियाँ कटवा कर देश से निकलवा दिया। रोशन अली ने सरदार मीर के पास जाकर पृथ्वी की बहुत निंदा की पर उत्तेजित होने पर भी वो उनमे आक्रमण न कर पाया क्योंकि उन्हें अपनी औकात के बारे में अच्छी तरह से पता थी। अब वो सौदा गर के भेष में अजमेर आया साथ में अरब के सरदार भी आया, पृथ्वीराज ने उनसे एक अच्छा सा घोडा देखकर खरीद लिया, कहा जाता है की उस दिन अजमेर में भूकंप आई थी, जिसके कारण तारागढ़ का प्रसिद्ध दुर्ग भूमि में धंस गया था। मीर ने इस बात का फायदा उठाना चाहा और नगर में कुछ सैनिकों के साथ लूटपात मचा दी परन्तु पृथ्वीराज और उनके वीर राजपूत ने उनका इस तरह से सामना किया की वे अपना सब कुछ छोड़ कर अपने प्राण बचाकर वहां से भागा।
एक बार गुजरात के राजा भिमदेव सोलंकी ने अजमेर के प्रजा का विश्वास उनके राजा से हटाने और इस बात का फायदा उठा वो अजमेर में हमला करने के फ़िराक में था, इसके लिए उसने अजमेर के प्रसिद्ध कोटेश्वर मंदिर के सोने का शिवलिंग चुराने का प्रयत्न किया पर पृथ्वी राज चौहान ने अपनी वीरता से उस शिवलिंग को बचाया और उसके आदमियों को ऐसा जवाब दिया की भीमदेव को मुंह के बल गिरना पड़ा अब उसका गुस्सा सातवें आसमान में जा पहुंचा था। पृथ्वीराज चौहान की बाल्य जीवन समाप्त होते ही उनके इस तरह के कई वीर गाथाओं के कारण उनका नाम चारों दिशाओं में गूंजने लगा था।

1 comment:

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